Saturday, May 8, 2010

एक छोटा लेकिन बड़ा विचार


स्पर्धा ही जीवन है । इसमें पीछे रहना जीवन में प्रगति को रोकना है. इसलिये हमें हर स्पर्धा में शामिल होना चाहिये ।

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मेरा सवाल 123 का सही जवाब- छाता (Umbrella )

सर्वप्रथम सही जवाब दिया श्री मनोज कुमार जी ने.

श्रीमती अल्पना वर्मा जी और शमीम जी ने भी सही जवाब दिया।


7 comments:

शमीम said...

उत्तम विचार. धन्यवाद.

मनोज कुमार said...

उम्दा विचार।

प्रकाश गोविंद said...

विजेताओं को बधाई के साथ 21 तोपों की सलामी
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एक पहेली मेरी तरफ से भी
देखें कौन बता पाता है :

"काली-काली होती है
छप्पर-छापर डोलती है
दूध-भात खाती है
म्याऊं-म्याऊं करती है "

बताओ क्या ???

Alpana Verma said...

बहुत बढ़िया विचार हैं.
प्रकाश जी आप की पहेली वाकई बहुत मुश्किल है..बिल्ली तो भात खाती नहीं..दूध इतनी महंगाई में कौन पिलाएगा बिल्ली को.....और छप्पर आज कल हैं कहाँ?जो किन छप्परों पर बिल्ली डोलेगी...
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म्याऊं तो आज कल इंसान भी करते हैं...---
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रंग देखें तो भैंस ,बकरी...
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अब दिमाग का दही बन जायेगा...:D... इतनी जटिल पहेली आप ही सुलझाएं!

ज़मीर said...

आदर्णीय प्रकाश जी को ज़मीर का प्रणाम.


मैं तो आपकी पहेली का उत्तर बिल्ली ही बताने वला था, पर अल्पना दीदी का विचार पढ्ने के बाद सोच में पड गया हुं.

KK Yadav said...

खूबसूरत विचार ...बधाई.

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'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.

Akshitaa (Pakhi) said...

कित्ती अच्छी बात कही...सुन्दर.
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पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'